Wednesday, June 08, 2011

Oh Persians of Transoxania...

خطاب به پارسیگویان ورارود

بیا برگرد این راه من و ما نیست
دم و دستگاه اقوام پریشانی ست
بیا که خط ما در شعر مولاناست
...به کلک رودکی و بیت خاقانی ست

بیا که ما و تو امروز مدهوشیم
دمی سودابه و گاهی سیاووشیم
میسر نیست با صد حله و ترفند
ز گاو روس شیر پارسی دوشیم

بیا که روس هم از ما گریزان شد
که گویی حضرت نوح است و طوفان شد
به کشتی پوشکین اندر شود آخر
الفبای من و تو خط بطلان شد

بیا که یوسفستیم و زلیخایی
ربوده با فسونی بند تقوایی
به یعقوبش قسم کین قصه را باید
به ته برد تا نگشتیم بند رسوایی...ء

Хитоб ба порсигӯёни Варорӯд

Биё, баргард, ин роҳи ману мо нест,
Даму дастгоҳи ақвоми парешонест.
Биё, ки хатти мо дар шеъри Мавлоност,
Ба килки Рӯдакию байти Хоқонист.

Биё, ки мову ту имрӯз мадҳушем,
Даме Судобову гоҳе Сиёвушем.
Муяссар нест бо сад ҳиллаву тарфанд
Зи гови рус шири порсӣ дӯшем.

Биё, ки рус ҳам аз мо гурезон шуд,
Ки гӯӣ ҳазрати Нӯҳ асту тӯфон шуд.
Ба киштӣ Пушкин андар шавад, охир
Алифбои ману ту хатти бутлон шуд.

Биё, ки Юсуфастему Зулайхое,
Рабуда бо фусуне банди тақвое.
Ба Яъқубаш қасам, к-ин қиссаро бояд
Ба таҳ бурд, то нагаштем банди расвоӣ...

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