Thursday, May 26, 2011

Elegies

دیری‌ست از عزیمت مرغان نگفته‌ام
گویی که این حدیث به عقبی نهفته‌ام
دیری‌ست شدّه‌های دل بی‌پدرشده
با اشک بی‌پدرشدگانم نسفته‌ام
با پلک شاد از فرح روزگار هم
دیری‌ست از جفای بلایا نخفته‌ام
این غم چو برگ‌های خزان فروشده
تا عمق قلب زار به‌ناچار رُفته‌ام
دیری‌ست جز به زوزۀ خاموش گرگ پیر
در این سرای غم سخنی ناشنفته‌ام...

Дерест аз азимати мурғон нагуфтаам,
Гӯӣ, ки ин ҳадис ба уқбо нуҳуфтаам.
Дерест шаддаҳои дили бепадаршуда
Бо ашки бепадаршудагонам насуфтаам.
Бо пилки шод аз фараҳи рӯзгор ҳам
Дерест аз ҷафои балоё нахуфтаам.
Ин ғам чу баргҳои хазони фурӯшуда
То умқи қалби зор баночор руфтаам.
Дерест ҷуз ба зӯзаи хомӯши гурги пир
Дар ин сарои ғам сухане ношунуфтаам…

***

تو را اگر به دلم راه نیست، با خود باش
چه بد که شکل ابر آسمان مطیع تو نیست

Туро агар ба дилам роҳ нест, бо худ бош,
Чи бад, ки шакли абри осмон мутеъи ту нест.

1 comment:

Anonymous said...

Дориюши гироми бо салом!
Марсияхои дардноке буданд.
Даст марезод